Madhya Pradesh

MP में बीजेपी की चुनावी रणनीति के सेंटर पॉइंट में आदिवासी, मोदी-शाह भी लगाएंगे जोर

मध्य प्रदेश में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावी मौसम में आदिवासी सूबे की सियासत का सेंटर पॉइंट बन गए हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सूबे की सत्ता के शीर्ष पर दोबारा काबिज होने की जंग में पूरा फोकस आदिवासियों पर ही शिफ्ट किए हुए है. इसकी वजह भी है.

आदिवासी मतदाताओं का भरोसा फिर से जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं. वे आदिवासी बहुल जिलों का जमीनी फीडबैक ले रहे हैं. उधर, बीजेपी रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के जरिए मतदाताओं के बीच अपने सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ उतरने के प्लान के साथ तैयार है. 22 जून को गृह मंत्री अमित शाह आदिवासी बहुल बालाघाट से यात्रा की शुरुआत करेंगे. समापन 27 जून को शहडोल पहुंचकर होगा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिरकत करेंगे.

अमेरिका दौरे पर गए पीएम मोदी स्वदेश लौटने के बाद 27 जून को मध्य प्रदेश में होंगे. वे राजधानी भोपाल से वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे. इसके बाद शहडोल के कार्यक्रम में भाग लेंगे. मोदी शहडोल जिले के पकरिया गांव में आयोजित कार्यक्रम में आयुष्मान कार्डधारकों से बात करेंगे. उनका गांव के बैगा, गोंड और कोल आदिवासी जाति के मुखिया के साथ भोजन करने का भी कार्यक्रम है.

सियासत के सेंटर में आदिवासी क्यों?

मध्य प्रदेश में करीब 22 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं. सूबे की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. करीब 90 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यही कारण है कि चुनावी साल में बीजेपी का फोकस आदिवासी वोट पर शिफ्ट हो गया है.

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2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से आदिवासी वोटर छिटके तो पार्टी कांग्रेस से मात खाकर सत्ता गंवा बैठी. 2013 में जहां बीजेपी को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं 2018 में कांग्रेस 30 सीटें जीतने में सफल रही.

एससी-एसटी के प्रभाव वाली करीब 90 सीटों में बीजेपी 35 के आसपास सिमट गई थी. 2023 के चुनाव में ऐसी स्थिति न हो, इसे लेकर सतर्क बीजेपी जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) से गठबंधन पर भी बात कर रही है. पार्टी राज्य में जनजातीय गौरव दिवस के मौके पर लागू किए गए पेसा एक्ट को भी भुना रही है

पार्टी आदिवासी वोटर्स को साथ लाना तो चाहती ही है, 2018 में जिन इलाकों में नतीजे अच्छे रहे थे, वहां भी किला मजबूत रखने की रणनीति पर काम किया जा रहा है. पीएम मोदी का 27 जून का कार्यक्रम इसकी तस्दीक करता है.

शहडोल विंध्य क्षेत्र में आता है. विंध्य बीजेपी के सबसे मजबूत वोट बेस वाला इलाका रहा है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी को महाकौशल जैसे इलाकों में सीटों का नुकसान उठाना पड़ा, तब भी विंध्य ऐसा इलाका रहा जहां बीजेपी ने सीटों के लिहाज से कांग्रेस पर बड़ी बढ़त बनाई. बीजेपी ने विंध्य की 30 में से 24 सीटें जीती थीं. शहडोल में मोदी का कार्यक्रम दो मोर्चों पर बीजेपी को राहत देगा.

एक तो शहडोल आदिवासी बहुल जिला है. दूसरा ये विंध्य क्षेत्र में आता है. विंध्य पर फोकस के पीछे एक वजह इस क्षेत्र में नारायण त्रिपाठी जैसे नेताओं के बागी तेवर भी हैं. नारायण त्रिपाठी लंबे समय से बीजेपी, सरकार को लेकर मुश्किलें बढ़ाने वाले बयान देते रहे हैं.

मध्य प्रदेश चुनाव 2018 में कांग्रेस बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों के जादुई आंकड़े से दो सीट पीछे रह गई थी. कांग्रेस 114 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी तो बीजेपी को 109 सीटें मिलीं. कांग्रेस ने सपा-बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के बाद कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और सूबे में शिवराज 4.0 का आगाज हुआ.

शिवराज ने चौथे कार्यकाल के लिए पद संभालने के बाद ही पूरा फोकस आदिवासी मतदाताओं पर शिफ्ट कर दिया. आदिवासियों को लेकर बीजेपी का आउटरीच प्रोग्राम हो या सरकार की ओर से योजनाओं की शुरुआत, आदिवासी अस्मिता से जुड़ी बिरसा मुंडा और टंट्या मामा जैसी विभूतियों का सम्मान हो या राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर आयोजन, भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का रानी कमलापति के नाम पर नामकरण, बीजेपी का आदिवासी और आदिवासी प्रतीकों पर फोकस साफ नजर आया.

शिवराज सरकार ने आदिवासी समुदाय के बीच भगवान का दर्जा रखने वाले बिरसा मुंडा के नाम पर बिरसा मुंडा स्वरोजगार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना, मुख्यमंत्री जनजाति कल्याण योजना जैसी योजनाएं शुरू कीं. आदिवासियों के लिए पशुधन योजना भी शुरू की गई.

Manish Tiwari

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