श्राद्ध के लिए महापर्व है सर्वपितृ अमावस्या, 14 अक्तूबर को पितृ पक्ष का आखिरी दिन
आस्था | श्राद्ध ‘महालय’ पर्व सम्पनता की ओर बढ़ रहा है और 14 अक्तूबर अमावस्या को पितृ विसर्जन के साथ ही यह पर्व संपन्न भी हो जाएगा। पौराणिक मान्यतों के अनुसार पितृ विसर्जन के दिन ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध-तर्पण करके उनका पूर्ण आशीर्वाद लिया जा सकता है। श्राद्ध पर्व परमेश्वर की ही रची हुई माया का एक अंश है जिसके द्वारा वे सभी प्राणियों के साथ अपना कौतुक करते हैं। ये सभी प्राणियों को अपने शरीर से ही प्रकट करते हैं और पुनः अपने में ही विलीन कर लेते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक के कालखंड को ही जीवन कहा गया है। जिसको जीव चौराखी लाख योनियों में अपने कर्मों के अनुसार अलग-अलग भोगता है। जन्म लेने के बाद भी जो परमेश्वर को याद रखते हैं वै कालान्तर में पुनः उन्हीं में विलीन हो जाते हैं और जो मार्ग से भटक जाते हैं उन्हें सभी योनियों में पुनः पुनः जन्म लेना ही पड़ता है। जिस प्रकार यात्रा करते समय मार्ग का सही पता न होने के कारण हम मार्ग भूलकर आगे निकल जाते हैं और किसी और से रास्ता पूछकर वापस लौटते हैं ठीक उसी प्रकार ये जीवन यात्रा भी है।
परमेश्वर ने प्राणियों को भूल सुधार के कई मोड़ दिए हैं उनमें से पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष भी एक है जिसमें अपने पितरों के प्रति पिंडदान- तर्पण आदि करके प्राणी बिना चौरासी लाख योनियों का भोग किये ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। मोक्षमार्ग के अन्य साधनों में जप-तप दान-पूण्य पूजा-पाठ, साधना, पिंड दान, श्राद्ध तर्पण आदि हैं। पिंडदान ही ऐसा कर्म है जिसे सविधि करके प्राणी अपने माता-पिता, दादा, दादी नाना-नानी, भाई, पुत्र आदि जैसे बंधू-बांधवों को भी मोक्ष दिला सकता है।
प्राणियों को मोक्ष लिए परमेश्वर ने छियानबे पर्व बनाए हैं। इनमें बारह महीने की बारह अमावस्या, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारम्भ की चार तिथियां, मनुवों के आरम्भ की चौदह मन्वादि तिथियां, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियां, पांच अष्टका, पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने छियानबे अवसर हैं। जिनमें शास्त्रों में अनुसार अलग-अलग तीर्थों, नदियों, गया तथा बद्रीनाथ में पिंडदान आदि किये जा सकते हैं।
इन सभी तिथियों में आश्विन माह कृष्णपक्ष की अमावस्या जिसे हम पितृ विसर्जन भी कहते हैं इस तिथि को सब तिथियों की स्वामिनी माना गया है जिसमें स्वजनों की मृत्यु तिथि ज्ञात न होने पर भी तीर्थों में पिंड दान करके उन्हें मोक्ष मार्ग तक पहुंचाया जा सकता है। पितृ विसर्जन तिथि का सर्वाधिक महत्व क्यों है इसके विषय में मत्स्यपुराण में एक घटना का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है।
देवताओं के पितृगण ‘अग्निष्वात्त’ तथा सोमपथ की मानस कन्या अच्छोदा ने एक हज़ार वर्ष तक निर्बाध तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य शक्ति परायण देवताओं के पितृगण अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर धारण कर आश्विन अमावस्या के दिन उपस्थित हुए। उन पितृगणों में ‘अमावसु’ नाम के एक अत्यंत सुंदर पितर की मनोहारी-छवि यौवन और तेज देखकर अच्छोदा कामातुर हो गयीं और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं किन्तु अमावसु अच्छोदा की कामप्रार्थना को ठुकराकर अनिच्छा प्रकट की जिससे अच्छोदा अति लज्जित हुई और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरीं। अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया कि, यह तिथि ‘अमावसु’ के नाम से जानी जाएगी। जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न करपाए वह केवल अमावस्या को ही पिंड दान, श्राद्ध-तर्पण करके सभी बीते चौदह दिनों का पुन्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकतें हैं। तभी से प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है और यह तिथि ‘सर्वपितृ श्राद्ध’ के रूप में भी मानाई जाती है।