धान छोड़ बदली खेती की तस्वीर: जेवरा के किसान दिलीप सिन्हा ने दलहन-तिलहन से कमाए 25 लाख, बने मिसाल

रायपुर, 16 दिसंबर 2025।
छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के ग्राम जेवरा में खेती की परंपरागत धारा बदलती दिख रही है। यहां के प्रगतिशील किसान दिलीप सिन्हा ने ग्रीष्मकालीन धान की खेती छोड़कर दलहन-तिलहन को अपनाया और वैज्ञानिक पद्धतियों के सहारे लगभग 25 लाख रुपये का शुद्ध लाभ अर्जित कर लिया। उनकी यह सफलता फसल विविधीकरण और टिकाऊ कृषि का मजबूत उदाहरण बनकर सामने आई है।
क्षेत्र में वर्षों से ग्रीष्मकालीन धान की खेती प्रचलित रही है, जिसमें पानी, बिजली, उर्वरक और श्रम की भारी खपत होती है। बढ़ती लागत और घटते मुनाफे को देखते हुए दिलीप सिन्हा ने खेती का स्वरूप बदलने का निर्णय लिया। कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में उन्होंने धान के विकल्प के रूप में मूंग-उड़द (दलहन) और सरसों-तिल (तिलहन) की खेती शुरू की।
इन फसलों की खासियत रही—कम पानी में अच्छी पैदावार, कम लागत, रोग-कीट का कम प्रकोप और बाजार में बेहतर दाम। दलहनी फसलों से मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ी, जिससे आने वाले सीजन की उत्पादकता में सुधार हुआ।
दिलीप सिन्हा ने उन्नत किस्मों का चयन, बीज उपचार, संतुलित उर्वरक प्रबंधन, ड्रिप-स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीक, समय पर निराई-गुड़ाई और फसल सुरक्षा जैसे वैज्ञानिक उपाय अपनाए। उत्पादन के बाद भंडारण और विपणन की सही रणनीति ने उनकी आय को और मजबूत किया।
यह सफलता कहानी बताती है कि कम संसाधनों में भी अधिक लाभ संभव है। धान के विकल्प के रूप में दलहन-तिलहन न सिर्फ आर्थिक रूप से फायदेमंद हैं, बल्कि जल संरक्षण, मिट्टी सुधार और टिकाऊ खेती की दिशा में भी बड़ा कदम साबित हो रहे हैं।



