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भक्ति, परंपरा और लोक-शक्ति का महासंगम: रथ खींचने से पापों से मुक्ति और सौभाग्य का सृजन, जानें जगन्नाथ रथयात्रा की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता

पुरी, ओडिशा। भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा एक बार फिर श्रद्धालुओं के अपार उत्साह और भक्ति के साथ आरंभ हुई। इस दिव्य अवसर पर हजारों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों को खींचने के लिए एकत्रित हुए, जो उनकी भक्ति, समर्पण और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक है।

रथ खींचने की परंपरा को रथयात्रा का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि इस पुण्य कार्य में भाग लेने से पापों का नाश होता है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है। साथ ही, रथ खींचना सौभाग्य और जीवन में सुख-समृद्धि लाने का माध्यम भी माना जाता है।

रथों की विशेषताएँ:

  • भगवान जगन्नाथ का रथ ‘नंदीघोष’ कहलाता है, जिसमें 16 पहिए होते हैं। यह लाल और पीले रंग के कपड़े से ढका होता है।
  • भगवान बलभद्र का रथ ‘तालध्वज’ कहलाता है, जिसमें 14 पहिए होते हैं और इसे लाल-हरे कपड़े से सजाया गया है।
  • देवी सुभद्रा का रथ ‘देवदलन’ कहलाता है, जिसमें 12 पहिए होते हैं और यह लाल और काले रंग से सुसज्जित रहता है।

रथयात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। यह परंपरा जन-शक्ति का प्रतीक बनकर यह सन्देश देती है कि रथ तभी चलता है जब लोक उसे खींचते हैं – यही लोक-शक्ति की वास्तविक अभिव्यक्ति है।

रथयात्रा के माध्यम से भक्तों को भगवान से सीधे जुड़ने का अवसर मिलता है, जिससे उनका आध्यात्मिक अनुभव और भी गहरा होता है। यह पर्व केवल ओडिशा तक सीमित नहीं, बल्कि देशभर में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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Manish Tiwari

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