
रायपुर, 23 सितंबर 2025 छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ क्षेत्र में ऊंची हरियाली भरी पहाड़ी पर विराजमान हैं मां करेला भवानी। करीब 200 साल पुराने इस मंदिर में आने के लिए भक्तों को 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। डोंगरगढ़ से 14 किमी उत्तर दिशा की ओर स्थित भंडारपूर गांव में स्थित यह पवित्र स्थल न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए बल्कि अपने चमत्कारी इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है।
माना जाता है कि ढाई सौ वर्ष पहले नारायण सिंह कंवर नामक एक गौटिया के घर के पास एक दिव्य कन्या प्रकट हुई। उसने गांव वालों से कहा कि वह यहीं रहेगी और उसके लिए मंदिर बनवाया जाए। इसके बाद वहां खुदाई के दौरान मां भवानी की पाषाण प्रतिमा मिली और इसे मंदिर में स्थापित किया गया।
समय बीतते-बीतते यह मंदिर जंगल और घास-फूस में छिप गया, लेकिन 25 साल पहले गोरखनाथ पंथी बाबा ने इस स्थल को फिर खोजा। उनके प्रयास से गांव वालों ने पुनः मंदिर का निर्माण करवाया और इसे “मां करेला भवानी” के नाम से जाना जाने लगा।
माना जाता है कि मां भवानी की कृपा से उन भक्तों की मनोकामना पूरी होती है, जिनके विवाह में बाधाएं आती हैं। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
भवानी डोंगरी का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहां की जमीन पर बिना बीज के करेले अपने आप उग आते हैं। मंदिर के नीचे बसे गांव का नाम भी छोटे करेला और बड़े करेला के नाम से जाना जाता है।
मां करेला भवानी मंदिर न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।