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भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, PMLA की धाराओं को दी चुनौती – ED को 10 दिन में जवाब दाखिल करने का आदेश

नई दिल्ली, 31 अक्टूबर 2025।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की जमानत याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। यह मामला कथित 2000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले से जुड़ा है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने सुनवाई के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) को 10 दिन के भीतर काउंटर एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

चैतन्य बघेल 18 जुलाई 2025 से जेल में बंद हैं। उन्होंने न केवल जमानत की मांग की है, बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक कानून (PMLA) की धारा 50 और 63 की संवैधानिक वैधता को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।


🔹 सिब्बल बोले — “बिना समन गिरफ्तारी करना गलत”

चैतन्य बघेल की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एन. हरिहरन ने पैरवी की।
सिब्बल ने दलील दी कि ED ने बिना नोटिस और बिना समन दिए गिरफ्तारी की, जो PMLA की धारा 19 के खिलाफ है। उन्होंने कहा —

“गैर-सहयोग का आरोप लगाकर गिरफ्तारी कर ली गई, जबकि कोई समन या नोटिस जारी नहीं किया गया। एजेंसी जानबूझकर जांच में देरी कर रही है ताकि आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखा जा सके।”


🔹 कोर्ट ने कहा — “आरोपों पर जवाब देना होगा”

कपिल सिब्बल की दलीलों पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा —

“गैर-सहयोग एकमात्र आधार नहीं है, आरोपों का जवाब तो देना ही पड़ेगा।”

वहीं जस्टिस जॉयमाल्य बागची ने टिप्पणी की —

“यह सिर्फ गिरफ्तारी के आधार का मामला नहीं है, बल्कि सवाल यह भी है कि जांच कब तक चलेगी।”


🔹 ED का जवाब — “तीन महीने का समय मिला है”

ED की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही एजेंसी को जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दे चुका है।

“हमारी प्रक्रिया जारी है, जांच के अंतिम चरण में है।”

कोर्ट ने इसके बाद ED को 10 दिन में काउंटर एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद ही अगली सुनवाई की तारीख तय की जाएगी।


⚖️ अब समझिए — क्यों दी गई PMLA की धाराओं को चुनौती

चैतन्य बघेल की याचिका में PMLA की धारा 50 और 63 को संविधान के अनुच्छेद 14, 20(3) और 21 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई है।


🔸 धारा 50 (PMLA)

  • ED को पूछताछ, गवाही लेने और दस्तावेज़ मांगने का अधिकार देती है।
  • ED अधिकारी न्यायिक शक्ति की तरह समन जारी कर सकते हैं और बयान रिकॉर्ड कर सकते हैं।
  • रिकॉर्ड किया गया बयान सबूत के रूप में स्वीकार्य होता है, जिससे व्यक्ति का चुप रहने का अधिकार सीमित हो जाता है।

🔸 धारा 63 (PMLA)

  • जांच में गैर-सहयोग या गलत जानकारी देने पर दंड का प्रावधान करती है।
  • यानी अगर ED को लगे कि व्यक्ति सहयोग नहीं कर रहा है, तो उसे सजा भी दी जा सकती है।

🔹 याचिका में मुख्य तर्क

  • ED बिना पर्याप्त आधार बताए गिरफ्तारी कर सकती है।
  • बिना नोटिस या अवसर दिए “गैर-सहयोग” का आरोप लगाया जा सकता है।
  • बयान जबरन दिलवाए जा सकते हैं, जिससे व्यक्ति खुद को दोषी ठहराने के लिए मजबूर होता है।
  • गिरफ्तारी और जांच को अनिश्चित समय तक बढ़ाने का अधिकार एजेंसी के दुरुपयोग की संभावना बढ़ाता है।

🔸 सरल भाषा में

चैतन्य बघेल की याचिका का मूल तर्क है —

“ED को इतने अधिक अधिकार नहीं होने चाहिए कि वह किसी को बिना नोटिस और बिना कानूनी संरक्षण के गिरफ्तार कर पूछताछ करे। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विपरीत है।”


📅 अगली सुनवाई:
ED के काउंटर एफिडेविट दाखिल करने के बाद तय की जाएगी।

📰 समाचार स्रोत: सुप्रीम कोर्ट में 31 अक्टूबर 2025 की कार्यवाही पर आधारित अद्यतन रिपोर्ट।

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Manish Tiwari

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