छत्तीसगढ़

farms बारिश से खराब हो रहे बीज और पौधे, खेतों से पानी निकासी की व्यवस्था करनी होगी फौरन

farms बिलासपुर- जलभराव वाले खेतों से पानी निकासी की व्यवस्था फौरन करनी होगी क्योंकि बारिश की स्थिति जैसी बनी हुई है, उससे बीज और पौधे खराब हो सकते हैं। जिन खेतों में हाल के दिनों में ही बीज डाले गए हैं,वहां दोबारा बोनी की स्थिति आ सकती है। ऐसे किसानों को अंकुरित बीज का छिड़काव करना होगा।

farms पिछले 5 दिन से हो रही रुक-रुककर बारिश अब किसानों को चिंता में डाल रही है। वर्षा जल का जमाव और बीज व पौधों के खराब होने की आ रही शिकायतों को ध्यान में रखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह जारी की है कि निकासी की व्यवस्था नालियां बनाकर किया जाना सही होगा तब ही बीज और पौधे सुरक्षित रखे जा सकेंगे। यह सलाह भी साथ में जारी की जा रही है कि जहां दोबारा बोनी की जरूरत दिखाई दे रही है, वहां पर अंकुरित बीज का छिड़काव ही एकमात्र उपाय है।

farms जहां बीज, अंकुरित होने या पौधे की ऊंचाई कम होने जैसी अवस्था में हैं, वहां जल जमाव दोहरे नुकसान की वजह भी बन सकता है। इसमें अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए किसानों को खेतों में नालियों जैसी संरचना तैयार करनी होगी, जिससे अतिरिक्त पानी नालियों से होता हुआ बाहर निकल सके। इस प्रबंधन से बीज और पौधों को बचाया जा सकेगा।

farms बारिश की स्थिति जैसी बनी हुई है, उसे देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि दोबारा बोनी जैसी कष्टप्रद स्थिति में अंकुरित बीज का छिड़काव किया जाना सही होगा। रोपाई जैसी विधि दूसरा उपाय है, इसके अलावा समय पर थरहा की उपलब्धता भी देखनी होगी। इससे लागत निश्चित ही बढ़ेगा। लिहाजा इस व्यय से बचने के लिए पहला विकल्प ही सही होगा।

जिन किसानों ने रोपा विधि से तैयारी की हुई है उन्हें उर्वरक छिड़काव में सावधानी रखनी होगी। उर्वरक का छिड़काव रोपाई से कम से कम 4 या 5 दिन बाद ही करने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों ने जारी की है। यह भी कहा गया है कि किसी भी स्थिति में जल का भराव आधा या एक सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अधिक होने की स्थिति में पौधों के गलन की शिकायत आ सकती है। इसलिए पानी प्रबंधन पर सतत नजर रखना होगा।

पानी प्रबंधन जरूरी
जल जमाव की स्थिति में नालियां बनाकर पानी की निकासी करें। दोबारा बोनी के लिए अंकुरित बीज का उपयोग करें। रोपाई वाले खेतों में पानी की मात्रा मानक के अनुसार रखें, तब ही फसल सुरक्षित रखी जा सकेगी।

  • डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट, एग्रोनॉमी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
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