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solar power नयी दिल्ली। देश की सबसे बड़ी तैरती सौर ऊर्जा परियोजना का संचालन पूरी तरह से शुरू हो गया है।solar power
solar power एनटीपीसी ने तेलंगाना के रामागुंडम में एक जुलाई मध्यरात्रि 00.00 बजे से 100 मेगावाट तैरती सौर पीवी परियोजना में से 20 मेगावाट क्षमता के वाणिज्यिक संचालन की घोषणा की है। इसी के साथ ही रामागुंडम में 100 मेगावाट की सौर पीवी परियोजना के संचालन के साथ दक्षिणी क्षेत्र में तैरती सौर क्षमता का कुल वाणिज्यिक संचालन बढ़कर 217 मेगावाट हो गया।
solar power उर्जा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि रामागुंडम में 100 मेगावाट की तैरती सौर परियोजना उन्नत तकनीक के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल विशेषताओं से संपन्न है। मेसर्स भेल के माध्यम से ईपीसी (इंजीनियरिंग, खरीद एवं निर्माण) अनुबंध के रूप में 423 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह परियोजना जलाशय के 500 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है। यह परियोजना 40 खंडों में विभाजित हैं और इनमें से प्रत्येक की क्षमता 2.5 मेगावाट है। प्रत्येक खंड में एक तैरता प्लेटफॉर्म और 11,200 सौर मॉड्यूल की एक सरणी होती है। तैरते प्लेटफॉर्म में एक इन्वर्टर, ट्रांसफॉर्मर और एक एचटी ब्रेकर होता है। सौर मॉड्यूल एचडीपीई (उच्च घनत्व पॉलीथीन) सामग्री से निर्मित फ्लोटर्स पर रखे जाते है।
solar power उन्होंने बताया कि तैरते रहने वाली इस पूरी प्रणाली (फ्लोटिंग सिस्टम) को विशेष एचएमपीई (हाई मॉड्यूलस पॉलीइथाइलीन) रस्सी के माध्यम से संतुलित जलाशय क्षेत्र (बैलेंसिंग रिजरवायर बेड) में रखे गए कुल भार तक लंगर डाला जा रहा है।
33 केवी भूमिगत केबल के माध्यम से मौजूदा स्विच यार्ड तक बिजली हटाई जा रही है। यह परियोजना इस मायने में अनूठी है कि इन्वर्टर, ट्रांसफॉर्मर, एचटी पैनल और एससीएडीए (पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण) सहित सभी विद्युत उपकरण भी तैरते फेरो सीमेंट प्लेटफॉर्म पर हैं। इस प्रणाली की एंकरिंग सभी खंडों के कुल भार के जरिए बॉटम एंकरिंग है।
solar power पर्यावरण के दृष्टिकोण से, सबसे स्पष्ट लाभ न्यूनतम भूमि की आवश्यकता है जो ज्यादातर निकासी व्यवस्था से जुड़ा है। इसके अलावा, तैरते हुए सौर पैनलों की उपस्थिति के साथ, जल निकायों से वाष्पीकरण की दर कम हो जाती है और इस प्रकार जल संरक्षण में मदद मिलती है।
प्रति वर्ष लगभग 32.5 लाख क्यूबिक मीटर पानी के वाष्पीकरण से बचा जा सकता है। सौर मॉड्यूल के नीचे का जल निकाय उनके परिवेश के तापमान को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे उनकी दक्षता और उत्पादन में सुधार होता है। इससे प्रत्येक वर्ष 1,65,000 टन कोयले की खपत में कमी की जा सकती है, वही 2,10,000 टन के कार्बन डाय ऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन से बचा जा सकता है।