‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’: दण्डकारण्य के 210 माओवादी कैडर लौटे समाज की मुख्यधारा में, बस्तर में शांति और विश्वास का नया अध्याय शुरू

रायपुर, 17 अक्टूबर 2025।
बस्तर की धरती ने आज इतिहास रच दिया। राज्य शासन की व्यापक नक्सल उन्मूलन नीति, शांति संवाद और विकास के सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप दण्डकारण्य क्षेत्र के 210 माओवादी कैडरों ने हिंसा का मार्ग त्याग कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिया।
‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’ अभियान के तहत हुए इस ऐतिहासिक आत्मसमर्पण ने बस्तर में शांति, विश्वास और विकास की दिशा में एक नई सुबह का संकेत दिया है। लंबे समय से नक्सली गतिविधियों से प्रभावित अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर क्षेत्र में यह घटनाक्रम नक्सल उन्मूलन अभियान का निर्णायक मोड़ माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य शासन द्वारा अपनाई गई समावेशी नक्सल उन्मूलन नीति ने स्थायी शांति की मजबूत नींव रखी है। पुलिस, सुरक्षा बल, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठनों और जनता के संयुक्त प्रयासों से हिंसा की संस्कृति को संवाद और विकास की संस्कृति में परिवर्तित किया जा सका है।
यह पहली बार है जब नक्सल विरोधी अभियान के इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में वरिष्ठ माओवादी कैडरों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया है। इनमें सेंट्रल कमेटी सदस्य (सीसीएम) रूपेश उर्फ सतीश, चार डीकेएसजेडसी सदस्य, 21 डिविजनल कमेटी सदस्य और अनेक वांछित व इनामी कैडर शामिल हैं।
आत्मसमर्पित माओवादियों ने 153 अत्याधुनिक हथियार — जिनमें AK-47, SLR, INSAS रायफल और LMG शामिल हैं — पुलिस को सौंपे।
यह केवल हथियारों का समर्पण नहीं, बल्कि हिंसा और भय के युग के अंत की प्रतीकात्मक घोषणा है — जो बस्तर में शांति और भरोसे के नए युग की शुरुआत का संकेत देती है।
जगदलपुर पुलिस लाइन परिसर में आयोजित इस आत्मसमर्पण कार्यक्रम में आत्मसमर्पित कैडरों का पारंपरिक मांझी-चालकी विधि से स्वागत किया गया। उन्हें भारतीय संविधान की प्रति और लाल गुलाब भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अरुण देव गौतम ने कहा,
“पूना मारगेम केवल नक्सलवाद से दूरी बनाने का प्रयास नहीं, बल्कि जीवन को नई दिशा देने का अवसर है। जो आज लौटे हैं, वे बस्तर में शांति, विकास और विश्वास के दूत बनेंगे।”
उन्होंने आत्मसमर्पित कैडरों से समाज निर्माण और विकास की दिशा में अपनी ऊर्जा लगाने का आह्वान किया।
इस अवसर पर एडीजी (नक्सल ऑपरेशन्स) विवेकानंद सिन्हा, कमिश्नर डोमन सिंह, बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी., कलेक्टर हरिस एस., सीआरपीएफ और पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, सामाजिक संगठन और स्थानीय प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
राज्य शासन द्वारा आत्मसमर्पित माओवादियों को पुनर्वास सहायता राशि, आवास और आजीविका योजनाओं की जानकारी दी गई। शासन ने उन्हें स्वरोजगार, कौशल विकास और शिक्षा से जोड़ने की प्रतिबद्धता जताई, ताकि वे सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन जी सकें।
मांझी-चालकी प्रतिनिधियों ने कहा कि
“बस्तर की परंपरा सदैव प्रेम, सहअस्तित्व और शांति का संदेश देती आई है। जो साथी आज लौटे हैं, वे इस परंपरा को नई शक्ति देंगे।”
कार्यक्रम के अंत में सभी आत्मसमर्पित कैडरों ने संविधान की शपथ लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्र निर्माण के प्रति निष्ठा व्यक्त की।
‘वंदे मातरम्’ की गूंज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ — और यह क्षण केवल 210 माओवादियों के आत्मसमर्पण का नहीं, बल्कि बस्तर में विश्वास, विकास और शांति के नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।