मानगढ़ धाम से चुनावी शंखनाद करेंगे राहुल गांधी, राजस्थान-एमपी के आदिवासियों को साधने की कोशिश
अपनी सांसदी बहाल होने के बाद राहुल गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए जहां मणिपुर मुद्दे पर सरकार को बेहद आक्रामक तरीके से घेरा, वहीं अब संसद के बाहर भी वह पहले से भी ज्यादा सक्रिय होने का संकेत दे रहे हैं। राहुल अब राजस्थान में सभा के जरिए चुनावी शंखनाद करेंगे। सांसदी बहाली होने के बाद राहुल पहली बार कोई सभा करने जा रहे है। इसी के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की प्रदेश में चुनावी दौरों की शुरुआत हो जाएगी। अगस्त माह में ही राहुल प्रदेश में तीन ओर सभाएं करेंगे। कांग्रेस ने इस सभा के लिए ये खास दिन इसलिए चुना है। क्योंकि आज से ठीक 38 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी राजस्थान आए थे। राजीव गांधी का वो दौरा इसलिए खास था क्योंकि इसी दौरे के बाद देशभर में आदिवासियों को सस्ता गेहूं देने की शुरुआत हुई थी।आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिशदरअसल, कांग्रेस पार्टी का राजस्थान में एससी-एसटी सीटों पर फोकस है। इसके लिए राजस्थान में मिशन-59 भी चलाया जा रहा है। इस मिशन के तहत पार्टी एससी-एसटी समुदाय की 59 सीटों पर फोकस कर रही है। प्रदेश में 34 एससी सीट और 25 एसटी सीटें है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 12 और भाजपा ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि दो एसटी सीटों पर बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) ने जीत हासिल की थी। यहीं नहीं,प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने आदिवासी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए आदिवासी बहुल क्षेत्र बांसवाड़ा को नया संभाग बना दिया। जबकि सलूंबर को नया जिला बना दिया है। इनके जरिए पार्टी ने आदिवासी समाज को साधने की पूरी कोशिश की है। हाल ही में नए बने बांसवाड़ा संभाग में बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले आएंगे। इन तीन जिलों में 11 आदिवासी सीटें आती हैं। इसके अलावा सलूंबर की 1 और उदयपुर में भी 4 आदिवासी सीटें हैं। बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में 2-2, डूंगरपुर में 1, उदयपुर में 1 सीट पर ही कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में कांग्रेस इस बेल्ट में खुद को मजबूत करना चाह रही है।राजस्थान के जरिए मध्य प्रदेश को भी साधेंगे की कोशिशमानगढ़ धाम आदिवासियों की आस्था और भक्ति का केंद्र माना जाता है। ये धाम राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र चार राज्यों के आदिवासी समाज के लिए आराध्य स्थल है। इनमें से मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसी साल चुनाव हैं। ऐसे में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राहुल मानगढ़ धाम से राजस्थान की 25 और मध्य प्रदेश की 45 सीटों को साधने की कोशिश करेंगे। राजस्थान कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि, राहुल गांधी की सभा सिर्फ मानगढ़ धाम में नहीं होगी। बल्कि वे गोविंद गिरी को याद करते हुए स्मारक भी जाएंगे। राहुल गांधी मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक नहीं घोषित करने पर भाजपा और प्रधानमंत्री पीएम मोदी को घेर सकते हैं। अपने भाषण के जरिए राहुल मणिपुर, नूंह जैसे मामलों पर बीजेपी को घेर सकते हैं। इसके अलावा राजस्थान में नए जिले-संभाग बनाने के अलावा सरकार की योजनाएं गिनाएंगे।बीटीपी ने कांग्रेस के गढ़ में लगाई सेंधप्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आदिवासी समाज लंबे समय तक कांग्रेस का कोर वोट बैंक रहा है। आज भी कुछ क्षेत्रों में पार्टी की स्थिति अन्य पार्टियों की तुलना में मजबूत नजर आ रही है। लेकिन भारतीय ट्राइबल पार्टी की एंट्री से पार्टी की जमीन कमजोर हुई हैं। जबकि दक्षिण जिलों को देखें तो कांग्रेस से ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती है। भाजपा ने उदयपुर में 4, बांसवाड़ा में 2, डूंगरपुर में 1 सीट जीती। भारतीय ट्राइबल पार्टी इन इलाकों में दोनों ही पार्टी के लिए चुनौती है। बीटीपी का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी का कर रही है। यहीं कारण है कि कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में जोर लगा रही है।मानगढ़ धाम को लेकर कांग्रेस कर सकती है कोई बड़ा वादाप्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि, पिछले साल 1 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी मानगढ़ धाम पहुंचे थे। इस दौरान मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने को लेकर काफी सियासत हुई थी। लेकिन पीएम ने रैली में ऐसी कोई घोषणा नहीं की थी। धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने को लेकर प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत ने भी पीएम को चिट्ठियां लिखी थीं। अब ऐसा माना रहा है कि राहुल अपनी रैली के जरिए कोई वादा कर सकते है। इसका सियासी फायदा पार्टी को विधानसभा के साथ साथ लोकसभा में भी देखने को मिलेगा।आदिवासियों के लिए क्यों अहम है मानगढ़?मानगढ़ धाम आदिवासियों की आस्था और भक्ति का केंद्र माना जाता है। इस जगह से बेहद दर्दनाक इतिहास जुड़ा है। इसे राजस्थान का जलियांवाला बाग भी कहा जाता है। दरअसल 17 नवंबर 1913 को अंग्रेजों ने मानगढ़ धाम की पहाड़ी को घेरकर अंधाधुंध गोलीबारी की थी जिसमें करीब 1,500 आदिवासी शहीद हो गए थे। आदिवासियों ने अपने समुदाय के संत गोविंद गुरु के नेतृत्व में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी।