छत्तीसगढ़
Trending

घोर नक्सल प्रभावित सुकमा के चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र की बड़ी उपलब्धि: राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणपत्र के साथ देशभर में बनाई अलग पहचान, संघर्ष और सेवा भावना की मिसाल

रायपुर 19 दिसम्बर 2024/ छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र स्वास्थ्य केन्द्र चिंतागुफा ने स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में वह कर दिखाया है, जिसकी कल्पना भी मुश्किल थी। वर्षों तक दहशत और चुनौतियों का पर्याय रहे, इस क्षेत्र ने अब अपनी सेवा भावना, मेहनत और प्रतिबद्धता से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र को 28 नवंबर 2024 को भारत सरकार के राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक प्रमाणपत्र से सम्मानित किया गया, जिसमें इसे 89.69 प्रतिशत का उत्कृष्ट स्कोर प्राप्त हुआ है। यह उपलब्धि सुकमा जिले में प्रथम स्थान पर आने के साथ ही पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गई है।

गौरतलब है कि चिंतागुफा स्वास्थ्य केन्द्र के अंतर्गत पांच उप-स्वास्थ्य केन्द्र हैं, जिसमें 45 घोर नक्सल प्रभावित गांव आते हैं। भारत के सबसे बड़ी नक्सल घटना, जहां 76 जवान शहीद हुए थे, वह ताड़मेटला गांव भी इसी सेक्टर में आता है। सुकमा कलेक्टर के अपहरण के बाद रिहाई का क्षेत्र हो या बुरकापाल में शहीदों की याद, सब इसी इलाके की घटना है। कोंटा विकासखण्ड अंतर्गत स्थित यह क्षेत्र घोर नक्सल प्रभावित है, जिसके अंदरूनी गांवों में आज भी माओवादियों की दहशत है।

चिंतागुफा का सफर: संघर्ष से सफलता तक

चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र, वर्ष 2009 में आरएमए मुकेश बख्शी की पदस्थापना से अस्तित्व में आया। उस समय यह क्षेत्र भवन विहीन, नेटवर्क विहीन, रोड विहीन था। स्टॉफ में सिर्फ एक आरएमए और एक वार्ड व्वाय के साथ स्कूल के एक कमरे में इसका संचालन होता था। जिसक कमरे में इलाज होता था, उसी कमरे ही प्रभारी सोते थे। नक्सलियों के खौफ और बुनियादी सुविधाओं की कमी ने हर कदम पर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए चुनौती थी। वर्ष 2011 में 11 अप्रैल को एक घटना के दौरान नक्सलियों ने एंबुलेंस पर हमला किया, जिसमें आरएमए मुकेश बख्शी और कई बच्चे मौजूद थे। बख्शी बच्चों को बेहतर इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र दोरनापाल एम्बुलेंस में ले जा रहे थे, तभी नक्सलियों ने एम्बुस लगाकर गोलीबारी की। एम्बुलेंस में 8 गोलियां लगी। किस्मत से किसी को गोली नहीं लगी। नक्सलियों ने सबको नीचे उतार कर जमीन में पेट के बल लेटाकर हाथ पीछे कर बंदूक टिका दिया था। आरएमए मुकेश बख्शी के बार-बार निवेदन और सेवाभाव को देखकर नक्सलियों ने सभी को छोड़ दिया। इसके बावजूद, बख्शी ने अपनी सेवा भावना से लोगों का दिल जीतकर इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की नींव मजबूत की। वर्ष 2017 में स्वास्थ्य केन्द्र चिंतागुफा के प्रभारी आरएमए मुकेश बख्शी को चिकित्सा सेवाभाव के लिए स्वास्थ्य मंत्री द्वारा धन्वंतरी सम्मान दिया गया। वर्ष 2017 में ही राज्य टीम के साथ मलेरिया अनुसंधान हेतु बख्शी, श्रीलंका जाने हेतु चयनित हुए। वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री द्वारा हेल्थ आइकॉन सम्मान से नवाजा गया।

यह क्षेत्र आज भी बुनियादी संसाधनों से दूर है। सड़कें, नेटवर्क और बाजार जैसी सुविधाएं सीमित हैं। लंबे समय तक नक्सल प्रभाव ने विकास कार्यों और भवन निर्माण को रोके रखा था। बारिश के मौसम में क्षेत्र टापू में बदल जाता है, जिससे पहुंचना कठिन हो जाता है। वर्ष 2020 में स्वास्थ्य भवन और आवासीय सुविधाओं का निर्माण हुआ, जिससे सेवाओं का विस्तार हुआ। राज्य और जिला अधिकारियों, डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट्स, और स्थानीय लोगों के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर के मानकों को पूरा करने की तैयारी हुई। 15-16 नवंबर 2024 को भारत सरकार की एनक्वॉस टीम ने चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र का मूल्यांकन किया। ओपीडी,आईपीडी लैब, लेबर रूम और प्रशासनिक कार्य जैसे सभी विभागों की समीक्षा में उच्च रैंक हासिल किया।

आज चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र प्रतिमाह औसतन 20 संस्थागत प्रसव, 1000 से अधिक ओपीडी, और 100 से अधिक भर्ती मरीजों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही है। यह उपलब्धि केवल एक स्वास्थ्य केंद्र की नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की दृढ़ता, संघर्ष और सेवा भावना की कहानी है। डॉ. अनिल पटेल, महेंद्र काको, सीमा किसपोट्टा, रीना कुमारी, पार्वती कुहरम, अनिता सोढ़ी सहित पूरी टीम ने एकजुट होकर इस सफलता को संभव बनाया। आयुष्मान आरोग्य मंदिर चिंतागुफा अब इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं का प्रतीक बन चुका है, और अपने स्वास्थ्य मानकों और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रहा है। यह सफलता अन्य घोर प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक उदाहरण है कि कैसे समर्पण और टीम वर्क से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।

1001518797 removebg preview
Manish Tiwari

Show More

Related Articles

Back to top button