गरियाबंद में पत्रकारों पर हमला: 4 आरोपी गिरफ्तार, अवैध रेत खनन का खुला खेल बेनकाब, कांग्रेस ने खनिज अफसरों पर मिलीभगत के लगाए आरोप

गरियाबंद, 10 जून 2025 गरियाबंद जिले में पत्रकारों पर हुए हमले के मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए चार आरोपियों को चंद घंटों में गिरफ्तार कर लिया है। यह कार्रवाई वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर की गई, जब पत्रकारों ने सुंदरलाल शर्मा चौक पर प्रदर्शन कर आरोपियों की गिरफ्तारी और अवैध रेत खनन में खनिज अधिकारियों की भूमिका की जांच की मांग की थी।
इस हमले में पत्रकार नेमीचंद बंजारे, जितेन्द्र सिन्हा, शेख इमरान, थानेश्वर बंजारे और आदी चक्रधारी को शारीरिक चोटें आई थीं। सूचना मिलते ही राजिम पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ के लिए कार्रवाई शुरू की। जानकारी के अनुसार आरोपी रायपुर की ओर भागने की फिराक में थे, जिन्हें पुलिस ने घेराबंदी कर गिरफ्तार किया।
गिरफ्तार आरोपी:
- उत्तम भारती (22), निवासी – पितईबंद
- मयंक सोनवानी (19), निवासी – पितईबंद
- चंद्रभान बंजारे उर्फ भानु (27), निवासी – पितईबंद
- शशांक गरड़ उर्फ शानु रॉव (23), निवासी – चंगोराभाठा, रायपुर
पुलिस ने इन पर मारपीट के साथ ही प्रतिबंधात्मक धाराओं में भी कार्रवाई की है।
खनन माफिया और प्रशासन की मिलीभगत पर उठे सवाल
इस हमले के पीछे अवैध रेत खनन माफिया की संलिप्तता को लेकर भी संदेह जताया जा रहा है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर खनिज अधिकारियों पर मिलीभगत के गंभीर आरोप लगाए हैं।
राजिम में कहां-कहां चल रहा अवैध खनन?
सूत्रों के मुताबिक राजिम क्षेत्र के पितईबंद, चौबेबंधा, बकली, रावण, तर्रा, और कोपरा जैसे इलाकों में 10 से अधिक अवैध रेत खदानें सक्रिय हैं। शाम होते ही हाईवा और चैन माउंटेन वाहन अवैध खनन के लिए घाटों की ओर निकलते हैं। एक-एक घाट में 5 से 6 फोकलेंड मशीनें तैनात रहती हैं और तड़के 4 बजे तक रेत खनन चलता है।
खनन माफिया रोजाना लाखों की कमाई कर रहे हैं, जिनका एक बड़ा हिस्सा कथित तौर पर संबंधित अधिकारियों को कमीशन के रूप में दिया जा रहा है।
जनता और पत्रकारों की मांग
पत्रकार संगठनों और स्थानीय जनता ने मांग की है कि सिर्फ गिरफ्तारी से बात नहीं बनेगी। अवैध खदानों को तत्काल सील किया जाए, दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई हो और पत्रकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
यह घटना न केवल पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि शासन-प्रशासन और खनन माफिया के संभावित गठजोड़ को भी उजागर करती है।