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300 करोड़ की मंदिर संपत्ति हड़पने की साजिश नाकाम: संभागायुक्त ने किया नामांतरण निरस्त, फर्जी महंत की वसीयत को माना संदेहास्पद

रायपुर। राजधानी रायपुर स्थित श्री ठाकुर रामचंद्र स्वामी मंदिर, जैतुसाव मठ (पुरानी बस्ती) की करीब 300 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति को हड़पने की साजिश पर बड़ा प्रशासनिक एक्शन लिया गया है। संभागायुक्त महादेव कावरे ने कथित महंत राम आशीष दास उर्फ आशीष तिवारी की अपील को खारिज कर उसके नाम पर संपत्ति के नामांतरण आदेश को निरस्त कर दिया है। आयुक्त ने इस पूरे प्रकरण में प्रस्तुत वसीयतनामा को संदेहास्पद मानते हुए आदेश जारी किया।

क्या है मामला?

श्री ठाकुर रामचंद्र स्वामी मंदिर, जैतुसाव मठ रायपुर एक पंजीकृत सार्वजनिक ट्रस्ट है, जिसकी स्थापना वर्ष 1955 में हुई थी। इस ट्रस्ट की धरमपुरा क्षेत्र में स्थित 57 एकड़ भूमि, जिसकी अनुमानित कीमत 300 करोड़ रुपये है, उसे कथित महंत राम आशीष दास ने अपने मामा रामभूषण दास की वसीयत के आधार पर निजी संपत्ति बताते हुए अपने नाम पर नामांतरण करवा लिया था। यह प्रक्रिया तत्कालीन तहसीलदार अजय चंद्रवंशी की मिलीभगत से संपन्न हुई, जिसे अब संभागायुक्त ने अवैध ठहराते हुए निरस्त कर दिया है।

वसीयत और पहचान पर उठे सवाल

राम आशीष दास ने पहले आशीष तिवारी नाम से पहचान बनाई, फिर खुद को महंत घोषित कर निहंग ब्रह्मचारी बताने लगा। उसने मंदिर के पते पर आधार कार्ड बनवाया, जबकि असल में वह वालफोर्ट सिटी में करोड़ों के बंगले में अपनी पत्नी ज्योति तिवारी और दो बच्चों के साथ रहता है। जांच में खुलासा हुआ है कि यह बंगला भी मंदिर की जमीन बेचकर खरीदा गया था।

संगठित साजिश में अन्य आरोपियों का नाम

राम आशीष दास का संबंध भारतमाला परियोजना मुआवजा घोटाले में जेल में बंद हरमीत सिंह खनूजा और विजय जैन से भी सामने आया है। जांच में यह भी पाया गया कि नामांतरण आवेदन से पहले उसने दो करोड़ तीस लाख का बयाना विशाल शर्मा से और 13 करोड़ रुपये एक शराब घोटाले के आरोपी से लिए थे। यह सौदा भी संदेह के घेरे में है क्योंकि भूमि उसी आरोपी के फार्म हाउस के पास स्थित है।

फर्जी पहचान और आधार कार्ड भी बनाए

मंदिर ट्रस्ट के सचिव महेंद्र अग्रवाल और ट्रस्टी अजय तिवारी के अनुसार, राम आशीष दास ने न सिर्फ मंदिर की जमीनें बेचने की कोशिश की बल्कि मुस्लिम व्यक्ति शब्बीर हुसैन का नाम बदलकर समीर शुक्ला और उसके पिता का नाम जीपी शुक्ला कर फर्जी आधार कार्ड बनवाया। इस पहचान के सहारे भी मंदिर की जमीन बेचकर पावती लेकर पैसा वसूल किया गया।

कानूनी कार्यवाही में ट्रस्ट को मिली राहत

संभागायुक्त ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि 1988 में रामभूषण दास को ट्रस्ट में सर्वराकार नियुक्त करने का आवेदन अस्वीकृत किया गया था। साथ ही वर्ष 1972 में पब्लिक ट्रस्ट रजिस्ट्रार ने व्यवस्था दी थी कि महंत लक्ष्मीनारायण दास की मृत्यु के बाद उनकी सारी संपत्ति ट्रस्ट की मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के 2022 के निर्णय का हवाला देते हुए यह भी कहा गया कि वसीयत के आधार पर संपत्ति मृत्युपरांत ही दी जा सकती है, और विवाद की स्थिति में सिविल न्यायालय से पुष्टि आवश्यक है।

सरकार और प्रशासन को ट्रस्ट का धन्यवाद

जैतुसाव मठ ट्रस्ट कमेटी ने राज्य सरकार और संभागायुक्त को माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया है और कहा है कि ट्रस्ट की अन्य जमीनों की वापसी की प्रक्रिया भी तेजी से जारी है।


यह मामला रायपुर में धार्मिक और सार्वजनिक ट्रस्ट की संपत्ति को लेकर हुए सबसे बड़े फर्जीवाड़ों में से एक माना जा रहा है, जिसमें प्रशासन की सख्ती से ट्रस्ट को राहत मिली है।

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Manish Tiwari

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