Children : पुत्र की चाहत में ‘आकस्मिक’ बच्चे पैदा कर रहे हैं लोग

Children : भारत में बच्चे आकस्मिक भी पैदा होते हैं, बेहतर परवरिश का भी है अभाव: किरण बेदी
Children : नयी दिल्ली ! पुड्डुचेरी की पूर्व उप-राज्यपाल एवं पूर्व भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी किरण बेदी ने मंगलवार को कहा कि हमारे समाज में बड़ी संख्या में बच्चे ‘अकस्माती’ बड़े हो रहे हैं।
बेदी ने अजय कुमार और प्रवीण परमेश्वर की किताब ‘माइंडफुल पेरेंटिंग’ के लॉन्च पर कहा,“ लेखक ने पैरेंटिंग (परवरिश) को जो परिभाषा दी, वह मुझे पसंद आयी। यह बेहतरीन है। उन्होंने इसे ‘निस्वार्थ प्रतिबद्ध कार्य’ बताया, लेकिन आज ऐसा नहीं है। ”
बेदी ने ज़ोर देते हुए कहा कि आज हमारे समाज में लोग ‘आकस्मिक’ बच्चे पैदा कर रहे हैं, और कई बार ऐसा पुत्र की चाहत में होता है।
Children : उन्होंने पुड्डुचेरी के उप-राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के अनुभव साझा करते हुए कहा,“ पुड्डुचेरी के बड़ी संख्या में विद्यालयों में बच्चे सीखने नहीं आते हैं। वह मुफ्त खाना, बैग, कपड़े और जूते लेने आते हैं। अपवाद हर जगह होते हैं, लेकिन मैं आपको वह बता सकती हूं जो मैंने ज्यादातर जगह देखा। ज्यादातर बच्चों के माता-पिता मज़दूर, कामगार, कुली आदि हैं। ”
उन्होंने कहा, “ जब हमने पुड्डुचेरी का सर्वेक्षण किया तो हमने पाया कि 75 प्रतिशत बच्चों के पिता रोज़ शराब पीते थे। पिता शराबी हैं, जिन्हें बच्चों की पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं है और बच्चों की मां मज़दूरी करती हैं जो किसी तरह सरकारी योजनाओं की मदद से घर चला रही हैं। उन बच्चों के भरण-पोषण का ध्यान रखा जा रहा है, लेकिन इसके बाद उनकी परवरिश के लिये कोई नहीं है। ”
Children : बेदी ने कहा, “ मैंने एक विद्यालय के प्रधानाचार्य से पूछा कि क्या वहां माता-पिता और अध्यापकों के बीच बैठकें होती हैं, तो उन्होंने बताया कि यह बैठकें होती हैं लेकिन इनमें आता कोई नहीं है। मैंने अध्यापकों से पूछा कि क्या वे बच्चों के माता-पिता से मिलने उनके घर जाते हैं, तो मालूम हुआ कि वे ऐसा नहीं करते। ”
उन्होंने कहा कि माता-पिता के गैरज़िम्मेदार रवैये के कारण बच्चे के सामने मुश्किलें नहीं आनी चाहिये, और इसमें विद्यालय की अहम भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि परिजनों को ज़िम्मेदार बनाना ज़रूरी है, जिसके लिये एक ऐसी व्यवस्था तैयार करनी चाहिये जिसमें अध्यापक और परिजन बच्चे के कल्याण की दिशा में काम करें।
उन्होंने कहा, “ हम ज़िम्मेदारी कैसे तय करें? मेरा मानना है कि यह शिक्षा विभाग के लिये एक चुनौती है। कोई रास्ता तलाशना होगा, जिसे माता-पिता और अध्यापकों के बीच नियमित बैठकें हो सकें क्योंकि हम में से कोई भी प्रशिक्षित परिजन नहीं है। हम सब अपने अनुभव और गलतियों से सीख रहे हैं। ”