रामगढ़ की चट्टानों पर खनन की चोट : टीएस सिंहदेव का BJP पर हमला— “छत्तीसगढ़ बिकाऊ नहीं है”

00हसदेव के बाद सरगुजा की सांस्कृतिक धरोहर पर संकट, सरकार ने केते खदान के लिए खोल दी नई राह00
रायपुर/सरगुजा, 4 अगस्त 2025
छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बार फिर पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा का मुद्दा गरमा गया है। सरगुजा के ऐतिहासिक रामगढ़ पर्वत के पास प्रस्तावित खनन परियोजना को लेकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है।
टीएस सिंहदेव ने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा,
“रामगढ़ पर्वत की चट्टानों से गूंजती है छत्तीसगढ़ की आत्मा। भाजपा सरकार ने हसदेव के बाद अब सरगुजा की धरोहर को पूंजीपतियों के मुनाफे की बलि पर चढ़ाने का षड्यंत्र रचा है। यह जंगल नहीं, हमारी अस्मिता पर हमला है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि 2020-21 में कांग्रेस सरकार ने जिस खनन परियोजना को रामगढ़ पर्वत से महज 10 किमी की दूरी के कारण रोका था, उसे भाजपा सरकार ने नया सर्वेक्षण कर 11 किमी दूर बताया है ताकि खदान को अनुमति दी जा सके।
“चार लाख पेड़ों की बलि और रामगढ़ की विरासत पर हमला”
प्रस्तावित केते एक्सटेंशन खदान के कारण लगभग 4.5 लाख पेड़ों की कटाई का खतरा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे लेमरू हाथी रिजर्व का वास स्थल भी नष्ट हो जाएगा, जिससे मानव-हाथी संघर्ष के मामले और बढ़ेंगे।
रामगढ़ पर्वत की सीता बेंगरा और जोगी मारा जैसी प्राचीन गुफाओं के भी क्षतिग्रस्त होने का खतरा मंडरा रहा है, जिन्हें भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का उद्गम स्थल माना जाता है।
“पूंजीपतियों के दबाव में भाजपा सरकार झुकी” — सिंहदेव का आरोप
टीएस सिंहदेव ने राजस्थान सरकार की “क्लीन चिट” की आड़ में प्रदेश सरकार पर अपने कॉरपोरेट मित्रों के फायदे के लिए छत्तीसगढ़ की जनता और धरोहर के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा — “यह सिर्फ खनन की लड़ाई नहीं है, यह छत्तीसगढ़ की अस्मिता की लड़ाई है। हम रामगढ़ की चट्टानों की तरह अडिग रहेंगे।”
स्थानीय आदिवासी समाज और पर्यावरण प्रेमियों का ऐलान — ‘छत्तीसगढ़ बिकाऊ नहीं है’
सरगुजा के स्थानीय ग्रामीणों, पंडों जनजाति और पर्यावरण संगठनों ने भी सरकार के इस निर्णय का तीखा विरोध करते हुए चेताया है कि यदि खनन स्वीकृति को रद्द नहीं किया गया तो प्रदेश में बड़ा जनआंदोलन होगा।
क्या सरकार रामगढ़ पर्वत की रक्षा करेगी या कॉरपोरेट दबाव में झुकेगी?
अब निगाहें छत्तीसगढ़ सरकार की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया है, और सियासत गरमा गई है। सवाल है — क्या सरकार विकास के नाम पर सरगुजा की धरोहर और छत्तीसगढ़ की अस्मिता का सौदा कर लेगी?