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मप्र में वेंटिलेटर पर आयुष्मान भारत योजना

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-प्रदेश में केवल 7 फीसदी को ही मिला आयुष्मान से इलाज
भोपाल : सोमवार, जुलाई 10, 2023। प्रदेश में 23 सितंबर 2018 को शुरू हुई केंद्र सरकार की अतिमहत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना वेंटिलेटर पर आ गई है। गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने वाली इस योजना में अब तक महज 7 फीसदी हितग्राहियों को ही मुफ्त उपचार मिल पाया है। इतना ही नहीं प्रदेश में 5 साल में सबसे ज्यादा 3.55 करोड़ आयुष्मान कार्ड बने हैं। इधर, योजना को समझने और उसे लागू करवाने में वरिष्ठ अधिकारियों को पसीने छूट रहे हैं। स्थिति यह है कि मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पतालों के अधीक्षकों को तो योजना की ठीक-ठीक जानकारी ही नहीं है। सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच रहे मरीजों को बिना कार्ड के इलाज देने से ही इनकार कर दिया जाता है, जबकि नियमानुसार हितग्राही मरीज का इलाज कार्ड बनने के पहले ही शुरू हो जाना चाहिए। ऐसे मरीजों का कार्ड भी आधा घंटे में बन जाना चाहिए, क्योंकि हर अस्पताल में एक आयुष्मान मित्र नियुक्त किया गया है। इसके बाद भी मरीजों को कार्ड के लिए दो से तीन दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है।
केंद्र की महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत योजना के आंकड़ों को देखें तो मप्र, यूपी सहित कई राज्य इलाज प्रदान करने में पीछे रहे हैं। इन राज्यों में 5 साल में इस योजना के तहत अस्पताल में इलाज का औसत 7 प्रतिशत रहा है। जबकि मप्र में 5 सालों में सबसे ज्यादा 3.55 करोड़ आयुष्मान कार्ड बने। इलाज का खर्च लगभग 4000 करोड़ रहा। दूसरी ओर साउथ के राज्यों सहित कुछ राज्यों में यह आंकड़ा 20 से 25 प्रतिशत ही रहा है। सालाना आधार पर यह दर और भी कम है। जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल को-ऑर्डिनेटर अमूल्य निधि का कहना है कि मप्र, यूपी जैसे राज्यों में योजना का यिान्वयन निश्चित ही अच्छा नहीं रहा। योजना आने पर पहली बार इलाज के रेट्स पर नियंत्रण हुआ। इतने कार्ड्स पर इलाज नहीं हुआ तो क्या फर्जी कार्ड बने थे, ये जांच का विषय है।
मप्र की आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे
अगर आयुष्मान भारत योजना के आंकड़ों को देखें तो मप्र की आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है। आयुष्मान भारत (एमपी) के जनरल मैनेजर ओपी तिवारी ने कहा कि योजना के तहत पात्र परिवार 1.08 करोड़ हैं। मेडिकल आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. विवेक पांडेय ने कहा कि इतने कार्ड देखकर फर्जी कार्ड की संभावना जांचने के लिए बड़ी जांच की जरूरत है। मप्र में आयुष्मान घोटाला भी हो चुका है। रिटा. हेल्थ डायरेक्टर केके ठस्सू के मुताबिक मप्र में बड़े शहरों के अलावा इमपेनल्ड हॉस्पिटल्स का नेटवर्क छोटी जगहों में नगण्य है। यह वजह हो सकती है कि गंभीर न होने पर लोग स्थानीय स्तर पर इलाज करा लें। साउथ में हेल्थ नेटवर्क अच्छा है। कई अधिकारियों ने माना कि योजना में इलाज के रेट फिक्स होने से निजी अस्पतालों को दिक्कत रही है। पेमेंट अटकने का भी इशु रहा है।
120 अस्पतालों में घोटाला
गौरतलब है की प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध 120 निजी अस्पतालों ने बड़ा घोटाला सामने आ चुका है। इनमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर सहित प्रदेश के ख्यातिप्राप्त निजी अस्पताल भी शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग अब इन निजी अस्पतालों पर अर्थदंड लगाकर वसूली कर रहा है। बता दें कि आष्युमान योजना के अंतर्गत कुल 620 निजी अस्पतालों को तीन साल (वर्ष 2019 से जुलाई 2022 तक) में 1048 करोड़ 98 लाख 19 हजार 481 रुपयों का भुगतान किया गया है। जांच में कई तरह के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। कई अस्पतालों में खुद के कर्मचारियों के नाम आयुष्मान कार्ड बनवा दिए गए थे और उन्हें मरीज बनाकर रकम निकाल ली गई। इसी तरह किसी मरीज का बिल 50 हजार का बना तो उसे बढ़ाकर दो लाख रुपये की राशि सरकार से वसूल ली जाती थी। वहीं, ग्रामीण क्षेत्र के आयुष्मान कार्डधारियों को अस्पताल लाने के लिए जगह-जगह एजेंट नियुक्त किए गए थे। कुछ अस्पतालों ने इन्हें जनसंपर्क अधिकारी का पदनाम दे दिया था। बिलिंग की राशि में बढ़ोतरी का खेल जांच के नाम पर किया जाता था। महंगी-महंगी जांच के नाम पर बिल बना लिए जाते थे।

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Shelendra Shrivas

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